MA Semester-1 Sociology paper-II - Perspectives on Indian Society - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र द्वितीय प्रश्नपत्र - भारतीय समाज के परिप्रेक्ष्य - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र द्वितीय प्रश्नपत्र - भारतीय समाज के परिप्रेक्ष्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2682
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र द्वितीय प्रश्नपत्र - भारतीय समाज के परिप्रेक्ष्य

प्रश्न- निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए : (1) दलितों की आर्थिक स्थिति (2) दलितों की राजनैतिक स्थिति (3) दलितों की संवैधानिक स्थिति।

उत्तर -

(1) दलितों की आर्थिक स्थिति - दलितों की आर्थिक स्थिति अत्यधिक दयनीय थी। इनके पास न खेती के लिए भूमि थी, न नौकरी और न ही व्यापार। ऐसी हालत में उनकी जीविका बड़ी मुश्किल से चलती। डॉ. अम्बेडकर एक अच्छे अर्थशास्त्री थे। डॉ. अम्बेडकर 1942 ई. में वायसराय की कार्यकारिणी परिषद के सदस्य बने और उन्हें भारत सरकार के श्रम विभाग का प्रधान बनाया गया। सर्वप्रथम उन्होंने " श्रम कानूनों की निर्माण प्रक्रिया में एकरूपता की आवश्यकता" पर अधिक बल दिया ताकि भारत जैसे बड़े देश की प्रादेशिकता विधान सभाएं स्वायत्तता की आड़ में सामान्य तथा राष्ट्रीय महत्व के मुद्ददों की अनदेखी न कर सकें साथ ही श्रमिक वर्ग स्वतन्त्रता, समानता व भ्रातृत्व चाहता है। डॉ. अम्बेडकर ने नाजीवाद को भारतीयों के लिए "एक सीधा खतरा" बताया और कहा कि ऐसी शक्तियों से जनतन्त्र, स्वतन्त्रता, समानता तथा भ्रातृत्व के आदर्शों के कट्टर दुश्मन हैं। निरन्तर सावधान रहना चाहिए 1945 ई. में इनकी प्रेरणा से देश में रोजगार दफ्तर खोले गए तथा खानों में काम करने वाली महिलाओं को मेटर्निटी लाभ सुलभ हुआ तथा श्रमिकों के हित के लिए 1946 ई. में एक विधेयक भी पास हुआ। 1944 ई. में खानों में काम करने वाले मजदूरों को दशा सुधारने के लिए "कोल माइंस लेबर वेलफेयर फंड" की स्थापना की गई तथा मजदूरों को सवेतन छट्टियाँ तथा सामान्य दर से ओवरटाइम की सुविधाएँ भी दिलवाईं। उन्होंने कहा कि "मजदूरों को यह समझ जाना चाहिए कि गरीबी पूर्व के जन्म में किए हुए पाप नहीं अपितु इसका कारण अमीरों द्वारा किया गया अत्याचार है। मनुष्य को रोटी चाहिए या. स्वतन्त्रता? यह विवाद बहुत समय से चला आ रहा है, पेट की आग सबसे बड़ी आग है। इस आग में स्वतन्त्रता, अधिकार, लोकतन्त्र सब कुछ झुलस जाता है और दलितों को तो ठीक से रोटी भी नहीं मिल रही थी।" डॉ. अम्बेडकर ने एक विशिष्ट श्रम दर्शन विकसित किया। उन्होंने समस्त आर्थिक सुधारों में, चाहे वह औद्योगीकरण हो, राष्ट्रीयकरण या फिर कृषि फार्मिंग, उन पद दलित, निर्धन एवं कमजोर वर्गों को हिन्दू बनाया जो सदियों से दरिद्रता तथा विकट अभावग्रस्त जीवन जी रहे थे। वे नहीं चाहते थे कि श्रमिक वर्ग अपने मालिकों की क्रूर शर्तों पर अस्वस्थ स्थितियों में काम करें अथवा सम्मानपूर्वक जीवन न जिए बल्कि मालिकों द्वारा श्रमिकों को दास बनाने की प्रवृत्ति को हमेशा के लिए समाप्त करना चाहते थे। इसलिए डॉ. अम्बेडकर ने श्रम संघ व हड़ताल के अधिकार दिलाए। उन्होंने मार्क्सवादी क्रांति और गांधीवादी न्यास सिद्धान्त को कोई स्थान नहीं दिया क्योंकि एक में हिंसा व हत्या साधन है तो दूसरे में पूँजीपति की पूर्ण सुरक्षा है। डॉ. अम्बेडकर तो मालिक और मजदूर को एक-दूसरे से मुक्त कराना चाहते थे। वह श्रमिक वर्ग के लिए एक सम्मानजनक सामाजिक जीवन चाहते थे जो आर्थिक तंगी और भय से ग्रसित थे। वह चाहते थे कि श्रमिक को शिक्षा, स्वास्थ्य, संगठन, वस्त्र, आवास सांस्कृतिक आमोद-प्रमोद तथा सम्बन्धित सुख-सुविधाएँ प्राप्त हों तथा विश्व सत्ता में भागीदारी भी बने। किसी भी आर्थिक विकास के लक्ष्य सामाजिक गतिशीलता, सहभागितावादी दृष्टिकोण और नीति निर्णायाकों एवं लक्ष्यात्मक समूहों के बीच दूरी कम किए बिना प्राप्त नहीं किए जा सकते। यह भारतीय यथार्थता की महत्वपूर्ण आवश्यकता है। कृषि के लिए वन तथा भूमि दलितों को अनुदान में देने की वकालत डॉ. अम्बेडकर ने की जिसके कारण दलितों को सरकार ने भूमि मुहैया कराई।

डॉ. अम्बेडकर ने खोटी व्यवस्था को समाप्त करने के लिये अक्टूबर 1937 में बाम्बे लेजेस्लेटिव कौंसिल में बिल प्रस्तुत किया। इस खोटी व्यवस्था के द्वारा किसनों को घृणित दासता की स्थिति में ला दिया जाता था। डॉ. अम्बेडकर तेजी के साथ औद्योगीकरण चाहते थे तथा साथ ही साथ कृषि को भी अत्यधिक प्रोत्साहित करना चाहते थे क्योंकि उत्पाद से खाद्य आपूर्ति होती और इसके अभाव में उद्योग नहीं चल सकते थे। डॉ. अम्बेडकर ने राजनीतिक सत्ता को मात्र शासन करने का माध्यम नहीं माना बल्कि इसे सामाजिक रूपान्तरण व आर्थिक मुक्ति से जोड़ा। यही कारण है कि सरकारी क्षेत्र में औद्योगिक और व्यापार उद्यम पर बल दिया गया। उन्होंने दलितों को स्वावलम्बी बनने को कहा क्योंकि जब तक कि वे आर्थिक दृष्टि से स्वावलम्बी नहीं होंगे उनकी सामाजिक और राजनीतिक जटिलता समाप्त नहीं होगी। अतएव दलितों को अपने स्वयं के स्वयं के उद्योगों, स्वयं की उत्पादन प्रणाली को विकसित करना होगा। अम्बेडकर जातिगत अर्थव्यवस्था के विरुद्ध थे। उनके अनुसार जातिगत अर्थव्यवस्था न केवल निर्धनता निरक्षरता व बेरोजगारी को बढ़ावा दिया, अपितु करोड़ों अछूतों को भुखमरी, बीमारी, बेगार, बंधुआश्रम, भिक्षावृत्ति, अपराध, चोरी-डकैती जैसी बुराइयों के अधेरे में झोंक दिया। अम्बेडकर जी चाहते थे कि स्त्री-पुरुष बुद्ध के सम्यक आजीविका के सिद्धान्त को अपनाएं परन्तु वह अतिवादी राष्ट्रीकरण एवं समाजवादी कठोरता के पक्ष नहीं थे। यदि स्वेच्छा से कोई अपने धन-सम्पत्ति का त्याग समाज के हित में करता है तो उसमें किसी तरह का ऐतराज नहीं है पर राज्य के भय के कारण अथवा दमनकारी कानून के द्वारा ऐसा किया जाता है तो मानव की गरिमा और व्यक्ति की स्वतन्त्रता पर कुठाराघात होगा ये आर्थिक मुक्ति के साथ-साथ व्यक्ति की स्वतन्त्रता और जनतान्त्रिक अधिकारों को भी बनाए रखना चाहते थे।

(2) दलितों की राजनैतिक स्थिति - डॉ अम्बेडकर के अनुसार "दलितों को उनके मानवीय अधिकार सवर्णों के मात्र हृदय परिवर्तन से प्राप्त नहीं हो सकते बल्कि इसे प्राप्त करने के लिए दलितों को राजनीति में साझेदारी भी प्राप्त करनी होगी।" इसके लिए 1917 ई. से ही वह लगातार पहले अंग्रेजों से और बाद में भारतीय संसद से दलितों के राजनीतिक अधिकारों की माँग कर रहे थे। 27 जनवरी 1919 ई. लार्ड साउथबरों की अध्यक्षता में एक कमेटी इस उद्ददेय के साथ गठित की गई थी कि भारत में मताधिकार किन-किन लोगों को दिया जाए और उसका आधार क्या होगा? 8 नवम्बर 1927 ई. को सर जान साइमन की अध्यक्षता में उत्तरदायी सरकार व संवैधानिक सुधार हेतु साइमन कमीशन की नियुक्ति की घोषणा की गई। 3 फरवरी 1928 ई. को कमीशन बम्बई पहुँचा। डॉ. अम्बेडकर ने कमीशन के सामने सामाजिक गुलामी के खात्मे, मताधिकार, विधान मण्डलों में प्रतिनिधित्व सभी सरकारी सेवाओं में आरक्षण, कानून के समक्ष समानता आदि मांगे रखीं। साइमन कमीशन के समक्ष भारतीय समाज की वास्तविक स्थिति को डॉ. अम्बेडकर ने रखा तथा इनके नेतृत्व में "आल इंडिया डिप्रेस्ड क्लासेस" ने सुरक्षित स्थानों के साथ-साथ डोमिनियन स्टेटस की मांग की जिसमें सुरक्षित स्थानों तथा संयुक्त चुनाव की व्यवस्था हो। 18 दलित संस्थाओं में 16 ने दलितों के लिये स्वतन्त्र निर्वाचन क्षेत्र की मांग की। किन्तु कमीशन भी अछूतों की मांग को पूरा करने में असमर्थ रहा। डॉ. अम्बेडकर 1927 से 1939 ई. तक मुंबई विधान मण्डल के सदस्य रहे। साइमन कमीशन की अनुसंशा के अनुसार भारतीयों की मांग पर विचार करने के लिये भारत के विभिन्न दलों के नेताओं को ब्रिटिश सरकार ने गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए लंदन आमन्त्रित किया और इसके लिए 12 नवम्बर, 1930 की तिथि घोषित की गई। इसमें दलितों के प्रतिनिधि के रूप में डॉ. अम्बेडकर व श्रीनिवासन को आमंत्रित किया गया।

डॉ. अम्बेडकर ने गोलमेज सम्मेलन में दलितों का पक्ष प्रस्तुत करते हुये कहा कि "दलित स्वयं में ऐसे लोगों का समूह है जो मुसलमानों से भिन्न एवं अलग है। यद्यपि उन्हें हिन्दू कहा जाता है लेकिन हिन्दू जाति किसी भी अर्थ में अविभाज्य नहीं है। वे न केवल उनसे अलग रहते हैं अपितु जो उन्हें दर्जा प्राप्त है वह भी भारत में अन्य जातियों के दर्जे से बिल्कुल भिन्न है। अन्तर केवल इतना है कि कृषि कर्मियों और नौकरों के साथ अस्पृश्यता का बर्ताव नहीं किया जाता जबकि दलित अस्पृश्यता के अभिशाप का शिकार है। उनसे भी खराब बात यह है कि छुआछूत के कारण उन पर लादी गई गुलामी से न केवल सार्वजनिक जीवन में उनके साथ भेदभाव बरता जाता है बल्कि उन्हें समान अवसरों और मानवीय जीवन के लिए आवश्यक नागरिक अधिकारों से भी वंचित रखा जाता है। मुझे विश्वास है कि इतनी बड़ी जाति जिसकी जनसंख्या लंदन अथवा फ्रांस की जनसंख्या के बराबर है और जो अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करने के लिए भी सक्षम नहीं है, के दृष्टिकोण को हृदयंगम करने से ही राजनीतिक समस्या का सही समाधान सम्भव होगा। डॉ. अम्बेडकर ने द्वितीय गोलमेज सम्मेलन (1931) में दलितों के लिए राजनीतिक संरक्षण की अनेकानेक भांगों को प्रस्तुत किया। फलस्वरूप सफलता से दलितों में नई चेतना जागृत हुई जिसके कारण दलित अपने अधिकारों के प्रति सचेष्ट हुये किन्तु यह गैर-दलितों को अच्छा नहीं लगा और 20 सितम्बर, 1932 ई. को मध्याह्न 12 बजे से गाँधी जी ने साम्प्रदायिक पंचाट के विरोध में आमरण अनशन प्रारम्भ कर दिए। डॉ. अम्बेडकर और गाँधी जी के वार्तालाप के परिणामस्वरूप बड़ी मुश्किल से डॉ. अम्बेडकर संधि के लिए तैयार हुए और गांधी जी को प्राणदान देकर पूना पैक्ट किऐ जिसे 26 सितम्बर, 1932 ई. को ब्रिटिश मन्त्रिमण्डल की अनुशंसा पर इस संधि को लोकसभा द्वारा मान्यता मिली। संधि पत्र पर डॉ. अम्बेडकर व हिन्दुओं के प्रतिनिधि पीण्डित मदन मोहन मालवीय ने हस्ताक्षर किए।

डॉ. अम्बेडेकर ने 7 नवम्बर, 1932 ई. को गोलमेज के तृतीय अधिवेशन में सम्मिलित होने के लिए लंदन प्रस्थान किया। 2 नवम्बर, 1932 ई. को परिषद का कार्य शुरू हुआ जिसमें डॉ. अम्बेडकर ने ठक्कर वाप्पा की कुछ विशेष योजना प्रस्तुत की थी। इस योजना में दलितों को नागरिकता के अधिकार दिलाने तथा सार्वजनिक स्थानों को बिना रोक-टोक उपयोग करने की स्वतन्त्रता तथा समान अवसर व परस्पर सम्बन्ध एवं साथ निवास करने की स्वतन्त्रता की मांग की। 1934 ई. तक दलितों को अनेक नामों जैसे दलित, अछूत, अस्पृश्यों हरिजन आदि से जाना जाता था। किन्तु पूना पैक्ट के बाद सवैधानिक तौर पर अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति का नाम दिया गया। डॉ. अम्बेडकर का मानना था कि राजनीतिक सत्ता वह कुंजी है जिससे सामाजिक प्रगति के समस्त ताले खोले जा सकते हैं।

(3) दलितों की संवैधानिक स्थिति - डॉ. अम्बेडकर भारत का संविधान अपने विचारों के अनुसार तो नहीं बना पाए तथापि संविधान द्वारा उन्होने सामाजिक व आर्थिक समानता स्थापित 'करने का कानूनी दस्तावेज अवश्य तैयार करके लागू करवाया। भारतीय संविधान लागू होने के बाद दलितों की स्थिति में काफी परिवर्तन हुआ। इसके द्वारा काफी हद तक ब्राह्मणों के विशेषाधिकार को समाप्त करने में सहयोग मिला। भारतीय संविधान में ऐसे बहुत से उपबन्ध किये गये जो दलितों की स्थिति को सुधारने में महत्वपूर्ण सिद्ध हुए -

• संविधान के अनुच्छेद 14 में यह उपबन्ध किया गया है कि "भारत राज्य क्षेत्र में किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता से अथवा विधियों के समान संरक्षण में राज्य द्वारा वंचित नहीं किया जाएगा।
• अनुच्छेद 16 के अनुसार - देश में व्याप्त असमानता व जाति धर्म के नाम पर अयोग्यता को समाप्त कर दिया गया।
• अनुच्छेद 19 द्वारा सभी को स्वतन्त्रता का अधिकार दिया गया क्योंकि भारत में दलित समाज दोहरी गुलामी से ग्रसित था।
• अनुच्छेद - 20 यह व्यवस्था करता है कि किसी व्यक्ति को एक अपराध के लिये एक से अधिक बार अभियोजित नहीं किया जा सकता।
• अनुच्छेद 21 के अनुसार - किसी व्यक्ति को उसके प्राण या दैविक स्वतन्त्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही प्रेरित किया जाएगा अन्यथा नहीं।
• भारतीय समाज में दलितों का शोषण अपने चरमोत्कर्ष पर था। इसे रोकने हेतु अनुच्छेद 23 में शोषण के विरुद्ध व्यवस्था की गई।
• अनुच्छेद 25 धर्म की स्वतन्त्रता का अधिकार देता है।
• अनुच्छेद - 29 अल्पसंख्यक वर्गों के हितों के संरक्षण के अनुसार भारत के राज्य क्षेत्र या उसके किसी भाग के प्रत्येक व्यक्ति को संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार दिया गया जिसमें राज्य द्वारा पोषित या राज्य निधि से सहायता पाने वाली किसी शिक्षा संस्था में किसी भी नागरिक को केवल धर्म, मूलवंश, जाति, भाषा या इनमें से किसी के आधार पर वंचित न किए जाने की व्यवस्था की गई।
• अनुच्छेद 38 के अनुसार राज्य ऐसी सामीजिक व्यवस्था करेगा जिसमें सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय राष्ट्रीय जीवन की सभी संस्थाओं को अनुप्रमाणित करेगा और प्रभावी रूप से संरक्षण करके लोककल्याण की अभिवृद्धि का प्रयास करेगा तथा विभिन्न क्षेत्रों में असमानता को समाप्त करेगा।
• अनुच्छेद 39 विधिक व्यवस्था करता है कि राज्य समान न्याय और निःशुल्क विधिक सहायता करेगा।
• डॉ. अम्बेडकर ने दलित समाज में रहकर अनुभव किया कि दलितों की दयनीय स्थिि के लिये इनकी अशिक्षा अधिक जिम्मेदार है। इसलिए इन्होंने अनुच्छेद 45 के तहत राज्य द्वारा बच्चों को 14 वर्ष की आयु पूरी करने तक निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा देने का प्रावधान किया तथा अनुच्छेद 46 में कहा गया है कि राज्य जनता के दुर्बल वर्गों के विशिष्ट अनुसूचित जातियों और जनजातियों के शिक्षा और अर्थ सम्बन्धी हितों की विशेष सावधानी से अभिवृद्धि करेगा और सामाजिक अन्याय और सभी प्रकार के शोषण से उनकी रक्षा करेगा।
• अनुच्छेद 164 (i) के अनुसार बिहार, मध्य प्रदेश, उड़ीसा राज्यों में जनजातियों के कल्याण का भारसाधक एक मंत्री होगा जो साथ ही अनुसूचति जातियों और पिछड़े वर्गों के कल्याण का या किसी अन्य कार्य का भी भार साधक हो सकेगा।
• अनुच्छेद 243 (घ) में अनुसूचति जाति और अनुसूचित जनजातियों तथा महिलाओं को प्रत्येक पंचायतों तथा अनुच्छेद 243 (न) में नगरपालिकाओं में स्थानों के आरक्षण का प्रावधान है। अनुच्छेद 244 में अनुसूचित क्षेत्रों और जनजाति क्षेत्रों का प्रशासन तथा अनुच्छेद 244 (क) में असम को कुछ जनजाति क्षेत्र को समाविष्ट करने वाला एक स्वशासी राज्य बनाना है।
• अनुच्छेद 325 धर्म, मूलवंश, जाति या लिंग के आधार पर किसी व्यक्ति का निर्वाचन नामावली में सम्मिलित किए जाने के लिए अपात्र न होगा तथा अनुच्छेद 326 लोकसभा और राज्य की विधानसभाओं के लिए निर्वाचन के वयस्क मताधिकार के आधार पर व्यवस्था करेगा।
• दलित जनसंख्या के आधार पर लोकसभा व राज्य विधान सभाओं में पहुँचने के लिये अनुच्छेद 330, लोकसभा व अनुच्छेद 332 राज्य की विधानसभाओं हेतु अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के स्थानों के लिए आरक्षण की व्यवस्था है। अनुच्छेद 335 में सेवाओं और पदों के लिए अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के दावे का प्रावधान किया गया है। अनुच्छेद 338 के अन्तर्गत अनुसूचित जाति तथा जनजातियों के कल्याण के लिए एक विशेष दलित अधिकारी की नियुक्ति की व्यवस्था की गई तथा अनुच्छेद 340 द्वारा राष्ट्रपति भारत के राज्य क्षेत्रों के भीतर सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से अनुसूचित जातियों, पिछड़े वर्गों की दशाओं को और उनकी कठिनाइयों को दूर करने और उनकी दशा को सुधारने के लिए आयोग की नियुक्ति करने का प्रावध गान किया गया। अनुच्छेद 341 में अनुसूचित जातियों की सूची तथा अनुच्छेद 342 में अनुसूचित जनजातियों की सूची एवं अनुच्छेद 366 (24) में अनुसूचित जातियों की परिभाषा तथा अनुच्छेद 366 (25) में अनुसूचित जनजातियों की परिभाषा दी गई।

डॉ. अम्बेडकर द्वारा दलित विकास हेतु किए गए प्रयासों का परिणाम यह हुआ कि दलितों को शिक्षा देने हेतु तीन लाख रुपए अनुदान मिलने लगा तथा कालेजों के लिए 30 छात्र वृत्तियाँ मंजूर की गईं और 30 छात्रों को उच्च अध्ययन हेतु इंग्लैण्ड भेजने की व्यवस्था की गई।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- लूई ड्यूमाँ और जी. एस. घुरिये द्वारा प्रतिपादित भारत विद्या आधारित परिप्रेक्ष्य के बीच अन्तर कीजिये।
  2. प्रश्न- भारत में धार्मिक एकीकरण को समझाइये। भारत में संयुक्त सांस्कृतिक वैधता परिलक्षित करने वाले चार लक्षण बताइये?
  3. प्रश्न- भारत में संयुक्त सांस्कृतिक वैधता परिलक्षित करने वाले लक्षण बताइये।
  4. प्रश्न- भारतीय संस्कृति के उन पहलुओं की विवेचना कीजिये जो इसमें अभिसरण. एवं एकीकरण लाने में सहायक हैं? प्राचीन भारतीय संस्कृति की चार विशेषतायें बताइये? मध्यकालीन भारतीय संस्कृति की चार विशेषतायें बताइये? आधुनिक भारतीय संस्कृति की चार विशेषतायें बताइये? समकालीन भारतीय संस्कृति की चार विशेषतायें बताइये?
  5. प्रश्न- प्राचीन भारतीय संस्कृति की चार विशेषतायें बताइये।
  6. प्रश्न- मध्यकालीन भारतीय संस्कृति की चार विशेषतायें बताइये।
  7. प्रश्न- आधुनिक भारतीय संस्कृति की चार विशेषतायें बताइये।
  8. प्रश्न- समकालीन भारतीय संस्कृति की चार विशेषतायें बताइये।
  9. प्रश्न- भारतीय समाज के बाँधने वाले सम्पर्क सूत्र एवं तन्त्र की विवेचना कीजिए।
  10. प्रश्न- परम्परागत भारतीय समाज के विशिष्ट लक्षण एवं संरूपण क्या हैं?
  11. प्रश्न- विवाह के बारे में लुई ड्यूमा के विचारों की व्याख्या कीजिए।
  12. प्रश्न- पवित्रता और अपवित्रता के बारे में लुई ड्यूमा के विचारों की चर्चा कीजिये।
  13. प्रश्न- शास्त्रीय दृष्टिकोण का महत्व स्पष्ट कीजिये? क्षेत्राधारित दृष्टिकोण का क्या महत्व है? शास्त्रीय एवं क्षेत्राधारित दृष्टिकोणों में अन्तर्सम्बन्धों की विवेचना कीजिये?
  14. प्रश्न- शास्त्रीय एवं क्षेत्राधारित दृष्टिकोणों में अन्तर्सम्बन्धों की विवेचना कीजिये?
  15. प्रश्न- इण्डोलॉजी से आप क्या समझते हैं? विस्तार से वर्णन कीजिए।.
  16. प्रश्न- भारतीय विद्या अभिगम की सीमाएँ क्या हैं?
  17. प्रश्न- प्रतीकात्मक स्वरूपों के समाजशास्त्र की व्याख्या कीजिए।
  18. प्रश्न- ग्रामीण-नगरीय सातव्य की अवधारणा की संक्षेप में विवेचना कीजिये।
  19. प्रश्न- विद्या अभिगमन से क्या अभिप्राय है?
  20. प्रश्न- सामाजिक प्रकार्य से आप क्या समझते हैं? सामाजिक प्रकार्य की प्रमुख 'विशेषतायें बतलाइये? प्रकार्यवाद की उपयोगिता का वर्णन कीजिये?
  21. प्रश्न- सामाजिक प्रकार्य की प्रमुख विशेषतायें बताइये?
  22. प्रश्न- प्रकार्यवाद की उपयोगिता का वर्णन कीजिये।
  23. प्रश्न- प्रकार्यवाद से आप क्या समझते हैं? प्रकार्यवाद की प्रमुख सीमाओं का उल्लेख कीजिये?
  24. प्रश्न- प्रकार्यवाद की प्रमुख सीमाओं का उल्लेख कीजिये।
  25. प्रश्न- दुर्खीम की प्रकार्यवाद की अवधारणा को स्पष्ट कीजिये? दुर्खीम के अनुसार, प्रकार्य की क्या विशेषतायें हैं, बताइये? मर्टन की प्रकार्यवाद की अवधारणा को समझाइये? प्रकार्य एवं अकार्य में भेदों की विवेचना कीजिये?
  26. प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार, प्रकार्य की क्या विशेषतायें हैं, बताइये?
  27. प्रश्न- प्रकार्य एवं अकार्य में भेदों की विवेचना कीजिये?
  28. प्रश्न- "संरचनात्मक-प्रकार्यात्मक परिप्रेक्ष्य" को एम. एन. श्रीनिवास के योगदान को स्पष्ट कीजिये।
  29. प्रश्न- डॉ. एस.सी. दुबे के अनुसार ग्रामीण अध्ययनों में महत्व को दर्शाइए?
  30. प्रश्न- आधुनिकीकरण के सम्बन्ध में एस सी दुबे के विचारों को व्यक्त कीजिए?
  31. प्रश्न- डॉ. एस. सी. दुबे के ग्रामीण अध्ययन की मुख्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
  32. प्रश्न- एस.सी. दुबे का जीवन चित्रण प्रस्तुत कीजिये व उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिये।
  33. प्रश्न- डॉ. एस. सी. दुबे के अनुसार वृहत परम्पराओं का अर्थ स्पष्ट कीजिए?
  34. प्रश्न- डॉ. एस. सी. दुबे द्वारा रचित परम्पराओं की आलोचनात्मक दृष्टिकोण व्यक्त कीजिए?
  35. प्रश्न- एस. सी. दुबे के शामीर पेट गाँव का परिचय दीजिए?
  36. प्रश्न- संरचनात्मक प्रकार्यात्मक विश्लेषण का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  37. प्रश्न- बृजराज चौहान (बी. आर. चौहान) के विषय में आप क्या जानते हैं? संक्षेप में बताइए।
  38. प्रश्न- एम. एन श्रीनिवास के जीवन चित्रण को प्रस्तुत कीजिये।
  39. प्रश्न- बी.आर.चौहान की पुस्तक का उल्लेख कीजिए।
  40. प्रश्न- "राणावतों की सादणी" ग्राम का परिचय दीजिये।
  41. प्रश्न- बृज राज चौहान का जीवन परिचय, योगदान ओर कृतियों का उल्लेख कीजिये।
  42. प्रश्न- मार्क्स के 'वर्ग संघर्ष' के सिद्धान्त की व्याख्या कीजिये? संघर्ष के समाजशास्त्र को मार्क्स ने क्या योगदान दिया?
  43. प्रश्न- संघर्ष के समाजशास्त्र को मार्क्स ने क्या योगदान दिया?
  44. प्रश्न- मार्क्स के 'द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद' से आप क्या समझते हैं? मार्क्स के 'द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिये?
  45. प्रश्न- मार्क्स के 'द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद' की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिये?
  46. प्रश्न- ए. आर. देसाई का मार्क्सवादी परिप्रेक्ष्य स्पष्ट कीजिए।
  47. प्रश्न- ए. आर. देसाई का मार्क्सवादी परिप्रेक्ष्य में क्या योगदान है?
  48. प्रश्न- ए. आर. देसाई द्वारा वर्णित राष्ट्रीय आन्दोलन का मार्क्सवादी स्वरूप स्पष्ट करें।
  49. प्रश्न- डी. पी. मुकर्जी का मार्क्सवादी परिप्रेक्ष्य क्या है?
  50. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक परिप्रेक्ष्य क्या है?
  51. प्रश्न- मुकर्जी ने परम्पराओं का विरोध क्यों किया?
  52. प्रश्न- परम्पराओं में कौन-कौन से निहित तत्त्व है?
  53. प्रश्न- परम्पराओं में परस्पर संघर्ष क्यों होता हैं?
  54. प्रश्न- भारतीय संस्कृति में ऐतिहासिक सांस्कृतिक समन्वय कैसे हुआ?
  55. प्रश्न- मार्क्सवादी परिप्रेक्ष्य की प्रमुख मान्यताएँ क्या है?
  56. प्रश्न- मार्क्स और हीगल के द्वन्द्ववाद की तुलना कीजिए।
  57. प्रश्न- राधाकमल मुकर्जी का मार्क्सवादी परिप्रेक्ष्य क्या है?
  58. प्रश्न- मार्क्सवादी परिप्रेक्ष्य की प्रमुख मान्यताएँ क्या हैं?
  59. प्रश्न- रामकृष्ण मुखर्जी के विषय में संक्षेप में बताइए।
  60. प्रश्न- सभ्यता से आप क्या समझते हैं? एन.के. बोस तथा सुरजीत सिन्हा का भारतीय समाज परिप्रेक्ष्य में सभ्यता का वर्णन करें।
  61. प्रश्न- सुरजीत सिन्हा का जीवन चित्रण एवं प्रमुख कृतियाँ बताइये।
  62. प्रश्न- एन. के. बोस का जीवन चित्रण एवं प्रमुख कृत्तियाँ बताइये।
  63. प्रश्न- सभ्यतावादी परिप्रेक्ष्य में एन०के० बोस के विचारों का विवेचन कीजिए।
  64. प्रश्न- सभ्यता की प्रमुख विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
  65. प्रश्न- डेविड हार्डीमैन का आधीनस्थ या दलितोद्धार परिप्रेक्ष्य स्पष्ट कीजिए।
  66. प्रश्न- भारतीय समाज को समझने में बी आर अम्बेडकर के "सबआल्टर्न" परिप्रेक्ष्य की विवेचना कीजिये।
  67. प्रश्न- दलितोत्थान हेतु डॉ. भीमराव अम्बेडकर द्वारा किये गये धार्मिक कार्यों का विवरण प्रस्तुत कीजिये।
  68. प्रश्न- दलितोत्थान हेतु डॉ. भीमराव अम्बेडकर द्वारा किए गए शैक्षिक कार्यों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिये।
  69. प्रश्न- निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए : (1) दलितों की आर्थिक स्थिति (2) दलितों की राजनैतिक स्थिति (3) दलितों की संवैधानिक स्थिति।
  70. प्रश्न- डॉ. अम्बेडकर का जीवन परिचय दीजिये।
  71. प्रश्न- डॉ. अम्बेडर की दलितोद्धार के प्रति यथार्थवाद दृष्टिकोण को स्पष्ट कीजिए।
  72. प्रश्न- डेविड हार्डीमैन का आधीनस्थ या दलितोद्धार परिप्रेक्ष्य के वैचारिक स्वरूप एवं पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  73. प्रश्न- हार्डीमैन द्वारा दलितोद्धार परिप्रेक्ष्य के माध्यम से अध्ययन किए गए देवी आन्दोलन का स्वरूप स्पष्ट करें।
  74. प्रश्न- हार्डीमैन द्वारा दलितोद्धार परिप्रेक्ष्य से अपने अध्ययन का विषय बनाये गए देवी 'आन्दोलन के परिणामों पर प्रकाश डालें।
  75. प्रश्न- डेविड हार्डीमैन के दलितोद्धार परिप्रेक्ष्य के योगदान पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
  76. प्रश्न- अम्बेडकर के सामाजिक चिन्तन के मुख्य विषय को समझाइये।
  77. प्रश्न- डॉ. अम्बेडकर के सामाजिक कार्यों पर प्रकाश डालिए।
  78. प्रश्न- डॉ. अम्बेडकर के विचारों एवं कार्यों का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिए।

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